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Monday, 13 May 2024

जानिए छोटी काशी मंडी के शिवरात्रि महोत्सव का महत्व प्रचलित है ये दंतकथाए

 


मंडी : धर्मवीर (TSN) - छोटी काशी के नाम से मशहूर शहर मंडी में अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव तैयारियां अंतिम दौर में जारी है। अपने प्राचीन मंदिरों और देव संस्कृति को संजोए इस शहर में शिवरात्रि महोत्सव के दौरान देव व मानस मिलन का भव्य नजारा देखने को मिलता है। भगवान शिव को समर्पित यह पर्व छोटी काशी में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है।


छोटी काशी में इस महोत्सव को मनाए जाने के पीछे दंतकथाएं प्रचलित है है। कुछ दंतकथाओं के अनुसार 1527 में मंडी शहर स्थापना के बाद से शिवरात्रि मेला मनाया जाना शुरू हुआ है, तो वहीं कुछ दंतकथाओं में इस मेले की शुरुआत 300-350 वर्ष पहले हुई थी।इस बार मंडी में शिवरात्रि महोत्सव 9 मार्च से शुरू होगा जो 7 दिनों तक चलेगा।


मंडी शिवरात्रि महोत्सव का राज परिवार से गहरा नाता


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके मंडी के शिवरात्रि महोत्सव का राज परिवार से गहरा नाता है। जब तक शहर में भगवान माधव राय की पालकी नहीं निकलती तब तक शिवरात्रि महोत्सव की शोभायात्रा नहीं निकाली जाती है। राज माधव राय को भगवान श्री कृष्ण का रूप माना जाता है। 18 वीं शताब्दी के दौरान राजा सूरज सेन के 18 पुत्रों का निधन होने हो गया और उन्होंने अपना सारा राजपाठ भगवान श्री कृष्ण के रूप राज माधव राय को सौंप दिया और खुद सेवक बन गए। यही कारण है कि आज भी भगवान माधव राय की पालकी शोभा यात्रा से पहले निकाला जाता है। शिवरात्रि महोत्सव के दौरान सभी देवी देवता माधव राय के मंदिर में ही सबसे पहले अपनी हाजिरी भरते हैं।


शिवरात्रि महोत्सव की एक मान्यता यह भी


शिवरात्रि महोत्सव की एक मान्यता यह भी है कि इसमें शैव, वैष्णव और लोक देवताओं का मिलन होता है, शैव को भगवान शिव, वैष्णव को भगवान कृष्ण और लोक देवता आराध्य देव, देव कमरूनाग को कहा गया है। इन तीन देवताओं के अनुमति के बाद ही शिवरात्रि का महोत्सव शुरू होता है। कमरू घाटी के आराध्य देव बड़ा देव कमरूनाग 7 फरवरी को महोत्सव में शिरकत करने के लिए पहुंच रहे हैं। इनके मंडी में पहुंचने के बाद ही जनपद के अन्य देवी देवता शहर में पहुंचते हैं। देव कमरुनाग का देव समाज और जिला प्रशासन के द्वारा पुल घराट पर स्वागत किया जाएगा। माधव राय मंदिर में हाजिरी भरने के उपरांत देव कमरुनाग का राज परिवार की ओर से स्वागत किया जाएगा। थोड़ी देर राज बेहड़े रुकने के बाद देव कमरुनाग सीधा करना माता मंदिर के लिए रवाना हो जाएंगे। देव कमरू नाग अकेले ऐसे देवता है जो न तो जलेब यानी शोभायात्रा में शिरकत करते हैं और ना ही पड्डल मैदान में शिवरात्रि महोत्सव में अन्य भाग लेते हैं। पूरे शिवरात्रि महोत्सव तक देव कमरूनाग टारना माता मंदिर में ही श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं।सर्व देवता समिति के अध्यक्ष शिवपाल शर्मा ने बताया कि जिला में सर्व देवता समिति के पास 216 पंजीकृत देवी देवता है। इनमें से 200 के करीब देवी देवता शिवरात्रि महोत्सव में पहुंचते हैं। इन देवी देवताओं को जिला प्रशासन की ओर से निमंत्रण दिया जाता है। वहीं कुछ देवी-देवता बिना निमंत्रण के भी शिवरात्रि महोत्सव में पहुंचते हैं जो की शिवरात्रि की शोभा बढ़ाते हैं। यह सभी देवी-देवता एक सप्ताह तक पड्डल मैदान में श्रद्धालुओं को अपना आशीर्वाद देते हैं। देवी देवताओं के आगमन से पड्डल मैदान में देवमयी नजारा देखने को मिलता है।


आजादी के बाद आया ये बदलाव


आजादी के बाद धीरे-धीरे सभी देशी रियासतों का विलय भारत में हो गया और राजाओं का राज पाठ भी समाप्त हो गया। राजाओं के राजपाठ की समाप्ति के बाद आज इस शिवरात्रि महोत्सव की बागडोर जिला प्रशासन के हाथों में है। महोत्सव के दौरान सभी देवी देवता अपने क्रम के अनुसार ही शिवरात्रि में शिरकत करते हैं। जलेब के दौरान भी जनपद के प्रमुख देवी देवता ही भाग लेते है। वरिष्ठ पत्रकार बीरबल शर्मा के अनुसार जनपद के देवी देवता सदियों पुराने क्रम के अनुसार ही आज भी शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत करते हैं। जबकि बदलते समय के साथ प्रशासन के द्वारा व्यवस्थाओं में कई बदलाव होते रहे हैं।


इस बार इस तरह से मनाया जा रहा शिवरात्रि महोत्सव


छोटी काशी मंडी में आयोजित होने वाले इस महोत्सव को लेकर स्थानीय लोगों में भी खासा उत्साहित रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि साल में एक बार यह भव्य नजारा मंडी शहर में देखने को मिलता है।
9 मार्च को शिवरात्रि महोत्सव की पहली जलेब के साथ मेले का आयोजन होगा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पहले जलेब में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत कर, मेले का भी विधिवत शुरुआत करेंगे। वहीं 12 मार्च को दूसरी व 15 को अंतिम जलेब निकाली जाएगी। महोत्सव के दौरान 6 सांस्कृतिक संध्याएं भी होंगी, जिसमें हिमाचली, पंजाबी, लोक कलाकार अपनी गायकी का जादू बिखेरेंगे। देवी देवताओं के मंडी आगमन से मंदिरों का यह शहर वाद्य यंत्रों से गुंजायमान हो जाता है। यह नजारा 7 दिनों तक बना रहता है। देवलुओं की नृत्य व देव ध्वनि से मंडी शहर एक तरह से थीरकने लगता है। देवी देवताओं के मिलन का यह नजारा देखते ही बनता है।

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