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Sunday, 12 May 2024

नागरिकता कानून और उससे जुड़ी मुस्लिम समाज की भ्रांतियां और समाधान

भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के माध्यम से नागरिकता कानून में कुछ परिवर्तन किए गए । इस अधिनियम के तहत धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़े व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए विशेष प्रक्रियाएं स्थापित की गईं। इसका लक्ष्य, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।


नागरिकता कानून 2019 को धार्मिक आधार पर नागरिकता प्राप्ति के लिए विशेष प्रक्रियाएं स्थापित करने के लिए आरोप किया गया है। मुसलमानों के कथित रहनुमाओं के मुताबिक यह उनके खिलाफ एक भेदभावपूर्ण कदम है और संविधान के समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के मूल्यों के खिलाफ है।कुछ मुसलमान समुदायों में विचार प्रवेशित कराया जा रहा है कि नागरिकता कानून उनके समुदाय को अलग करने और समाज को विभाजित करने का प्रयास है। जिसके मुताबिक वे इसको एक राजनीतिक फैसले के रूप में देखते हैं जिसका उद्देश्य उन्हें मानवाधिकारों और समानता से वंचित करना है।


सूफ़ी खानकाह एसोसियेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एडवोकेट सूफ़ी मोहम्मद कौसर हसन मजीदी का कहना है कि भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 मुसलमानों को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करता है, और नागरिकता प्राप्ति के लिए किसी विशेष धार्मिक समुदाय को नहीं निर्दिष्ट करता है।


मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को यह अधिनियम नागरिकता प्राप्ति के लिए कोई नया प्रक्रियात्मक ढांचा नहीं लागू करता है और उनके समान अधिकारों और विशेषाधिकारों को यह अधिनियम किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं करता है।यह अधिनियम विभाजन के पश्चात भारत में अवैध प्रवासी समस्याओं का समाधान करने के लिए बनाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य एक निश्चित अवधि तक भारत में शरणार्थी के रूप में मौजूद,हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी समुदायों को नागरिकता प्रदान करना है। इस अधिनियम का निर्माण विशेष रूप से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हुए अल्पसंख्यक समुदायों को, जो एक निश्चित अवधि तक भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं संरक्षित करने के लिए किया गया है।


जगह जगह किए जा रहे धरना और प्रदर्शनों में एक महत्वपूर्ण तथ्य का उल्लेख किया जा रहा था और वो था संविधान का प्रियेंबल यानी प्रस्तावना।जिसका उल्लेख करते हुए नागरिकता कानून 2019 के विरोधियों के द्वारा लगातार कैंपेन चलाए जा रहे थे । प्रस्तावना की दुहाई देते हुए नागरिकता कानून 2019 का विरोध किया जा रहा था।
संविधान की प्रस्तावना का आशय भारत के नागरिकों के लिए है। जिस नागरिकता कानून 2019 का विरोध उद्देश्य अथवा प्रस्तावना के आधार पर किया जा रहा था, उस कानून का कोई संबंध भारत के किसी भी नागरिक से नहीं है । उपरोक्त कानून में उन्हीं लोगों को जो पाकिस्तान,बांग्लादेश, अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक समूह हैं,उनके उन शरणार्थियों जो सीएए की शर्तों के मुताबिक एक अवधि से भारत में निवास कर रहे हैं, उन लोगों को भारत की नागरिकता देने के लिए यह अधिनियम लागू किया गया है।


जहां तक सवाल यह इन तीन देशों के अल्पसंख्यक समुदाय को भारत की नागरिकता देने का वो मात्र इसलिए कि कहीं न कहीं इन देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों का जुड़ाव भारत से है और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन तीनों देशों में इस्लामी चरमपंथी शक्तियों का प्रभुत्व है जो अपनी ही विपरीत विचारधारा के मुसलमानों को उन देशों में शांतिपूर्ण ढंग से जीने नहीं देती तो अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों का क्या हाल होगा इसका अंदाज़ा बखूबी लगाया जा सकता है।अफगानिस्तान एक ऐसा देश है जहां शरीयत कानून लागू है और पाकिस्तान में इसे लागू करने के लिए बकायदा तौर पर आंदोलन किए जा रहे हैं । हिमायते इस्लामी नामक संगठन के द्वारा बकायदा इसके लिए समूहों की स्थापना कर दी गई है जो कैंपेन चला कर शरीयत निजाम को लागू करवाने के लिए आंदोलन किया जा रहा है जिसके मुताबिक शरीयत निजाम लागू करने पर गैर मुस्लिमो को जिम्मी करार देकर उनसे जिजिया वसूला जाएगा और शासन प्रशासन में उनकी कोई भूमिका नहीं होगी । जाहिर है उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनना होगा या पलायन करना होगा ऐसी स्थिति में सिवाय भारत के कोई ऐसा देश नहीं जहां वह अपनी आस्था पर रहते हुए स्वतंत्रता पूर्वक अपना जीवन जी सकें।


भारत के मुसलमानों को इस अधिनियम का स्वागत करना चाहिए ताकि कट्टरपंथियों द्वारा सताए गए इंसानों को न्याय और सुरक्षित पनाह मिले और उन शरणार्थियों के दिलों में मुसलमानों के प्रति सद्भावना जाग्रत हो,वो मैल निकल जाए जिसे कुछ कट्टरपंथी शक्तियों ने नागरिकता कानून की पूर्व में की गई हिंसा के कारण उन शरणार्थियों के दिलों में डालने का प्रयास किया है।

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